
संवाददाता: विश्वदीप यादव
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने राज्यभर के कलेक्टर्स को स्पष्ट और सख़्त निर्देश दिए हैं कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में 'झोलाछाप' डॉक्टर्स के खिलाफ़ कड़ी कार्रवाई करें। यह निर्देश आम जनता को अवैध और गैर-प्रमाणित चिकित्सकों के चंगुल से बचाने के लिए एक बड़ा कदम माना जा रहा था। मगर, विदिशा जिले के नटेरन ब्लॉक में जमीनी हकीकत कुछ और ही बयाँ कर रही है। मुख्यमंत्री के आदेश के बावजूद, नटेरन और शमशाबाद के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के हाथ-पैर जैसे बंधे हुए हैं। सवाल उठता है कि आख़िर कौन सी शक्ति इन अधिकारियों को कार्रवाई करने से रोक रही है?
🧐 कार्रवाई के नाम पर 'डर' या 'डील'?
स्थानीय सूत्रों और संवाददाता के अनुसार, नटेरन ब्लॉक के पिपलधार जैसे क्षेत्रों में झोलाछाप डॉक्टर्स के क्लीनिक धड़ल्ले से चल रहे हैं। इन्हें न तो कानून का डर है और न ही प्रशासन का खौफ। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों में इन अवैध चिकित्सकों के खिलाफ़ कार्रवाई करने से पहले बार-बार सोचने की स्थिति है। यह स्थिति कई गंभीर सवालों को जन्म देती है: क्या यह झोलाछाप माफिया का संगठित भय है, या फिर अधिकारियों और इन अवैध संचालकों के बीच कोई ऐसी 'अंडरस्टैंडिंग' है जो कार्रवाई की राह में रोड़ा बन रही है?
💰 मज़दूर की जेब पर डाका: 300 की दिहाड़ी, 500 का इलाज!
सबसे चौंकाने वाला पहलू इन अवैध क्लीनिकों की बेलगाम लूट है। ये झोलाछाप डॉक्टर्स मरीजों की मजबूरी का फायदा उठाकर मनमाने दाम वसूल रहे हैं। पिपलधार क्षेत्र के इन क्लीनिकों में एक सामान्य बुखार या खांसी के इलाज के लिए भी ₹300 से ₹500 तक वसूले जा रहे हैं। इसमें अक्सर दो इंजेक्शन और दो दिन की गोली शामिल होती है। यही नहीं, एक ग्लूकोज की बोतल (IV ड्रिप) चढ़ाने के लिए ₹300 से ₹400 तक लिए जा रहे हैं।
ज़रा सोचिए, एक दिहाड़ी मज़दूर, जो दिनभर की कड़ी मेहनत के बाद मात्र ₹300 कमा पाता है, वह अपने इलाज के लिए ₹500 कैसे चुकाएगा? क्या देश में सामान्य दवाईयाँ इतनी महंगी हो गई हैं कि मामूली इलाज भी इतना खर्चीला हो गया है? इन झोलाछाप डॉक्टर्स की मनमानी वसूली सीधे-सीधे गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों की कमर तोड़ रही है। यह न सिर्फ आर्थिक शोषण है, बल्कि मरीज़ों की जान के साथ खुला खिलवाड़ भी है।
🚫 मरीज़ों की जान से खिलवाड़: कब जागेगा स्वास्थ्य विभाग?
इन अवैध क्लीनिकों पर इलाज की गुणवत्ता पर भी गंभीर सवाल खड़े होते हैं। बिना किसी मान्यता प्राप्त डिग्री या प्रशिक्षण के, ये लोग मरीज़ों को खतरनाक एंटीबायोटिक दवाइयाँ और इंजेक्शन दे रहे हैं, जिससे उनकी जान को खतरा हो सकता है। गलत इलाज से कई बार मामूली बीमारी भी गंभीर रूप ले लेती है।
अब सबकी निगाहें विदिशा जिले के स्वास्थ्य विभाग पर टिकी हैं। क्या अधिकारी मुख्यमंत्री के सख्त निर्देशों का पालन करेंगे और इन अवैध क्लीनिकों के खिलाफ़ निर्णायक कार्रवाई करेंगे? या फिर, यह पूरा मामला एक बार फिर से 'खानापूर्ति' बनकर रह जाएगा? यह देखना बाकी है कि अधिकारी 'डर' को त्याग कर 'जनता के हित' में कब खड़े होते हैं। नटेरन के लोगों को उम्मीद है कि प्रशासन जल्द ही इस अवैध लूट और जानलेवा खिलवाड़ पर रोक लगाएगा।